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GunTrayVibhagYog ~ Bhagwat Geeta Chapter 14 | गुणत्रयविभागयोग ~ अध्याय चौदह
अथ चतुर्दशोऽध्यायः- गुणत्रयविभागयोग
19-27 भगवत्प्राप्ति का उपाय और गुणातीत पुरुष के लक्षण
अर्जुन उवाच
कैर्लिंगैस्त्रीन्गुणानेतानतीतो भवति प्रभो।
किमाचारः कथं चैतांस्त्रीन्गुणानतिवर्तते।।14.21।।
अर्जुन उवाच-अर्जुन ने कहा; कै:-किन; लिङ्गै-लक्षणों से; त्रीन्–तीनों; गुणान्–प्रकृति के तीन गुणों को; एतान् – ये; अतीत:-गुणातीत; भवति है; प्रभो-परम प्रभुः किम्-क्या; आचार:-आचरण; कथम्-कैसे; च-भी; एतान्ये-; त्रीन् – तीनों; गुणान् – गुणों को; अतिवर्तते-पार करना।
अर्जुन ने पूछा-हे प्रभो ! वे मनुष्य जो प्रकृति के इन तीनों गुणों से परे हो जाते हैं उनके लक्षण क्या हैं? अर्थात प्रकृति के इन तीनों गुणों को पार किया हुआ मनुष्य किन लक्षणों से युक्त होता है? वे किस प्रकार के आचरण वाले होते हैं ? अर्थात उनके आचरण कैसे होते हैं? और वे किस प्रकार से या किन उपायों से प्रकृति के इन तीन गुणों के बंधन को पार कर पाते हैं या ?14.21
कैर्लिङ्गैस्त्रीन्गुणानेतानतीतो भवति प्रभो – हे प्रभो ! मैं यह जानना चाहता हूँ कि जो गुणों का अतिक्रमण कर चुका है। ऐसे मनुष्य के क्या लक्षण होते हैं ? तात्पर्य है कि संसारी मनुष्य की अपेक्षा गुणातीत मनुष्य में ऐसी कौन सी विलक्षणता आ जाती है? जिससे साधारण व्यक्ति समझ ले कि यह गुणातीत पुरुष है । किमाचारः – उस गुणातीत मनुष्य के आचरण कैसे होते हैं ? अर्थात् साधारण आदमी की जैसी दिनचर्या और रात्रिचर्या होती है । गुणातीत मनुष्य की वैसी ही दिनचर्या रात्रिचर्या होती है या उससे विलक्षण होती है । साधारण आदमी के जैसे आचरण होते हैं । जैसा खान-पान , रहन-सहन , सोना-जागना होता है। गुणातीत मनुष्य के आचरण , खान-पान आदि भी वैसे ही होते हैं या कुछ विलक्षण होते हैं । कथं चैतांस्त्रीन्गुणानतिवर्तते – इन तीनों गुणों का अतिक्रमण करने का क्या उपाय है ? अर्थात् कौन सा साधन करने से मनुष्य गुणातीत हो सकता है ?अर्जुन के प्रश्नों से पहले प्रश्न के उत्तर में भगवान् आगे के दो श्लोकों में गुणातीत मनुष्य के लक्षणों का वर्णन करते हैं – स्वामी रामसुखदास जी