Chapter 3 Bhagavad Gita Karm Yog

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Bhagavad Gita Chapter 3

 

 

 

कर्मयोग ~ अध्याय तीन

01-08 ज्ञानयोग और कर्मयोग के अनुसार अनासक्त भाव से नियत कर्म करने की आवश्यकता

    2      3      4              7      8

 

09-16 यज्ञादि कर्मों की आवश्यकता तथा यज्ञ की महिमा का वर्णन

    10      11      12      13      14      15      16

 

17-24 ज्ञानवानऔर भगवान के लिए भी लोकसंग्रहार्थ कर्मों की आवश्यकता

17      18      19      20      21      22      23     24

 

25-35 अज्ञानी और ज्ञानवान के लक्षण तथा राग-द्वेष से रहित होकर कर्म करने के लिए प्रेरणा

25      26      27      28      29      30      31      32      33      34      35

 

36-43 पापके कारणभूत कामरूपी शत्रु को नष्ट करने का उपदेश

36      37      38      39      40      41      42      43

 

 

श्लोक 1      श्लोक 2      श्लोक 3      श्लोक 4      श्लोक 5      श्लोक 6      श्लोक 7      श्लोक 8     

श्लोक 9     श्लोक 10    श्लोक 11     श्लोक 12    श्लोक 13    श्लोक 14    श्लोक 15    श्लोक 16     

श्लोक 17    श्लोक 18    श्लोक 19     श्लोक 20   श्लोक 21    श्लोक 22    श्लोक 23    श्लोक 24     

श्लोक 25   श्लोक 26    श्लोक 27     श्लोक 28   श्लोक 29   श्लोक 30    श्लोक 31    श्लोक 32     

श्लोक 33    श्लोक 34   श्लोक 35    श्लोक 36   श्लोक 37   श्लोक 38    श्लोक 39    श्लोक 40   

श्लोक 41    श्लोक 42   श्लोक43  

 

 

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