Chapter 3 Bhagavad Gita | Bhagavad Geeta Chapter 3 | Bhagavad Gita in Hindi |Bhagavad Gita – The Song of God | Srimad Bhagavad-Gita | Bhagavadgita | The Bhagavad Gita | The Bhagavad Gita by Krishna | Conversation between Arjun And Krishna | The Bhagavad Gita – An Epic Poem | The Bhagavad Gita by Krishna Dwaipayana Vyasa | Karma Yoga with Lyrics | Shrimad Bhagavad Gita | Shrimad Bhagwad Gita – Chapter – 3 | Chapter – 3 – The Gita – Shree Krishna Bhagwad Geeta | Chapter 03 – Bhagavad-Gita | Chapter 3 : Karma Yoga – Holy Bhagavad Gita | Bhagavad Gita Chapter 3 ” Karma Yoga ” | Bhagavad Gita Chapter 3- Karm Yog | श्रीमद्भगवद्गीता | सम्पूर्ण श्रीमद भागवत गीता | भगवद गीता हिंदी भावार्थ सहित | भगवद गीता हिंदी अर्थ सहित | Srimad Bhagwat Geeta in Hindi | भगवद गीता | भगवद गीता हिंदी में | श्रीमद्भगवद्गीता हिंदी अर्थ सहित | श्रीमद भगवद गीता | भगवद गीता अध्याय 3| Karma Yogam| गीता | Gita | Geeta | Bhagavad Gita with Hindi Meaning | कर्म योग | Essence of Karma Yoga Bhagavadgita Chapter-3| Bhagvad Gita | Bhagvat Gita | Bhagawad Gita | Bhagawat Gita | Bhagwat Gita | Bhagwat Geeta | Bhagvad Geeta | Bhagwad Geeta | भगवत गीता | भगवद गीता अध्याय 3 कर्म योग |
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कर्मयोग ~ अध्याय तीन
01-08 ज्ञानयोग और कर्मयोग के अनुसार अनासक्त भाव से नियत कर्म करने की आवश्यकता
09-16 यज्ञादि कर्मों की आवश्यकता तथा यज्ञ की महिमा का वर्णन
17-24 ज्ञानवानऔर भगवान के लिए भी लोकसंग्रहार्थ कर्मों की आवश्यकता
25-35 अज्ञानी और ज्ञानवान के लक्षण तथा राग-द्वेष से रहित होकर कर्म करने के लिए प्रेरणा
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36-43 पापके कारणभूत कामरूपी शत्रु को नष्ट करने का उपदेश
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