Bhagavad Gita Chapter 6

 

 

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आत्मसंयमयोग / ध्यान योग ~  छठा अध्याय

 

16-32 विस्तार से ध्यान योग का विषय

 

Bhagvad Gita Aatm sanyam yog chapter 6

नात्यश्नतस्तु योगोऽस्ति न चैकान्तमनश्नतः ।
न चाति स्वप्नशीलस्य जाग्रतो नैव चार्जुन ৷৷6.16৷৷

 

न-कभी नहीं; अति-अधिक; अश्नतः-खाने वाले का; तु-लेकिन; योग:-योग; अस्ति–है; न-न तो; च-भी; एकान्तम्-नितान्त; अनश्नतः-भोजन न करने वाले का; न- न तो; च-भी; अति-अत्यधिक; स्वप्न-शीलस्य–सोने वाले का; जागृतः-जो पर्याप्त नींद नहीं लेता; न-नहीं; एव-ही; च-और; अर्जुन-अर्जुन।

 

हे अर्जुन! जो लोग बहुत अधिक भोजन ग्रहण करते हैं या अल्प भोजन ग्रहण करते हैं, बहुत अधिक नींद या कम नींद लेते हैं, वे योग में सफल नहीं हो सकते ৷৷6.16৷৷

नात्यश्नतस्तु योगोऽस्ति ‘ अधिक खाने वाले  का योग सिद्ध नहीं होता (टिप्पणी प0 347)। कारण कि अन्न अधिक खानेसे अर्थात् भूख के बिना खाने से अथवा भूख से अधिक खाने से प्यास ज्यादा लगती है जिससे पानी ज्यादा पीना पड़ता है। ज्यादा अन्न खाने और पानी पीने से पेट भारी हो जाता है। पेट भारी होने से शरीर भी बोझिल मालूम देता है। शरीर में आलस्य छा जाता है। बार-बार पेट याद आता है। कुछ भी काम करने का अथवा साधन , भजन , जप , ध्यान आदि करने का मन नहीं करता। न तो सुखपूर्वक बैठा जाता है और न सुखपूर्वक लेटा ही जाता है तथा न चलने-फिरने का ही मन करता है। अजीर्ण आदि होने से शरीर में रोग पैदा हो जाते हैं। इसलिये अधिक खाने वाले पुरुष का योग कैसे सिद्ध हो सकता है ? नहीं हो सकता। ‘न चैकान्तमनश्नतः’ ऐसे ही बिलकुल न खाने से भी योग सिद्ध नहीं होता। कारण कि भोजन न करने से मन में बार-बार भोजन का चिन्तन होता है। शरीर में शक्ति कम हो जाती है। मांस-मज्जा आदि भी सूखते जाते हैं। शरीर शिथिल हो जाता है। चलना-फिरना कठिन हो जाता है। लेटे रहने का मन करता है। जीना भारी हो जाता है। बैठ करके अभ्यास करना कठिन हो जाता है। चित्त परमात्मा में लगता ही नहीं। अतः ऐसे पुरुष का योग कैसे सिद्ध होगा ? ‘न चाति स्वप्नशीलस्य’ जिसका ज्यादा सोने का स्वभाव होता है उसका भी योग सिद्ध नहीं होता। कारण कि ज्यादा सोने से स्वभाव बिगड़ जाता है अर्थात् बार-बार नींद सताती है। पड़े रहने से सुख और बैठे रहने से परिश्रम मालूम देता है। ज्यादा लेटे रहने से गाढ़ नींद भी नहीं आती। गाढ़ नींद न आने से स्वप्न आते रहते हैं , संकल्प-विकल्प होते रहते हैं। शरीर में आलस्य भरा रहता है। आलस्य के कारण बैठने में कठिनाई होती है। अतः वह योग का अभ्यास भी नहीं कर सकता फिर योग की सिद्धि कैसे होगी ? ‘जाग्रतो नैव चार्जुन ‘ हे अर्जुन जब अधिक सोने से भी योग की सिद्धि नहीं होती तो फिर बिलकुल न सोने से योग की सिद्धि हो ही कैसे सकती है क्योंकि आवश्यक नींद न लेकर जगने से बैठने पर नींद सतायेगी जिससे वह योग का अभ्यास नहीं कर सकेगा। सात्त्विक मनुष्यों में भी कभी सत्सङ्ग का सात्त्विक गहरी बातों का , भगवान की कथा का अथवा भक्तों के चरित्रों का प्रसङ्ग छिड़ जाता है तो कथा आदि कहते हुए , सुनते हुए जब रस, आनन्द आता है तब उनको भी नींद नहीं आती परन्तु उनका जगना और तरह का होता है अर्थात् राजसी-तामसी वृत्ति वालों का जैसा जगना होता है वैसा जगना सात्त्विक वृत्ति वालों का नहीं होता। उस जगने में सात्त्विक मनुष्यों को जो आनन्द मिलता है उसमें उनको निद्रा के विश्राम की खुराक मिलती है। अतः रातों में जगने पर भी उनको और समय में निद्रा नहीं सताती। इतना ही नहीं उनका वह जगना भी गुणातीत होने में सहायता करता है परन्तु राजसी और तामसी वृत्तिवाले जगते हैं तो उनको और समय में निद्रा तंग करती है और रोग पैदा करती है। ऐसे ही भक्तलोग भगवान के नामजप में , कीर्तन में , भगवान के विरह में भोजन करना भूल जाते हैं , उनको भूख नहीं लगती तो वे अनश्नतः नहीं हैं। कारण कि भगवान की तरफ लग जाने से उनके द्वारा जो कुछ होता है वह सत् हो जाता है – स्वामी रामसुखदास जी )

 

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