Bhagavad Gita Chapter 6

 

 

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आत्मसंयमयोग / ध्यान योग ~  छठा अध्याय

 

37-47  योगभ्रष्ट पुरुष की गति का विषय और ध्यानयोगी की महिमा

 

bhagavad gita in hindi chapter 6अर्जुन उवाच

अयतिः श्रद्धयोपेतो योगाच्चलितमानसः ।
अप्राप्य योगसंसिद्धिं कां गतिं कृष्ण गच्छति ৷৷6.37৷৷

 

अर्जुनः उवाच-अर्जुन ने कहा; अयतिः-आलस्य; श्रद्धया श्रद्धा के साथ; उपेतः-सम्पन्न; योगात्-योग से; चलित-मानस:-विचलित मन वाला; अप्राप्य प्राप्त करने में असफल; योग-संसिद्धिम् योग में परम सिद्धि; काम्-किस; गतिम्-लक्ष्य; कृष्ण-श्रीकृष्ण; गच्छति-प्राप्त करता है।

 

अर्जुन ने कहाः हे कृष्ण! योग में असफल उस योगी का भाग्य क्या होता है जो श्रद्धा के साथ इस पथ पर चलना प्रारम्भ तो करता है किन्तु जो अस्थिर मन के कारण भरपूर प्रयत्न नहीं करता और इस जीवन में योग के लक्ष्य तक पहुँचने में असमर्थ रहता है अर्थात जो योग में श्रद्धा रखने वाला है, किन्तु संयमी नहीं है, इस कारण जिसका मन अन्तकाल में योग से विचलित हो गया है, ऐसा साधक योग की सिद्धि को अर्थात भगवत्साक्षात्कार को न प्राप्त होकर किस गति को प्राप्त होता है ? ৷৷6.37৷৷

 

(‘अयतिः श्रद्धयोपेतो योगाच्चलितमानसः’ जिसकी साधन में अर्थात् जप , ध्यान , सत्सङ्ग , स्वाध्याय आदि में रुचि है , श्रद्धा है और उनको करता भी है पर अन्तःकरण और बहिःकरण वश में न होने से साधन में शिथिलता है , तत्परता नहीं है। ऐसा साधक अन्त समय में संसारे में राग रहने से , विषयों का चिन्तन होने से , अपने साधन से विचलित हो जाय , अपने ध्येय पर स्थिर न रहे तो फिर उसकी क्या गति होती है ? ‘अप्राप्य योगसंसिद्धिं कां गतिं कृष्ण गच्छति’ विषयासक्ति और असावधानी के कारण अन्तकाल में जिसका मन विचलित हो गया अर्थात् साधना से हट गया और इस कारण उसको योग की संसिद्धि परमात्मा की प्राप्ति नहीं हुई तो फिर वह किस गति को प्राप्त होता है ? तात्पर्य है कि उसने पाप करना तो सर्वथा छोड़ दिया था । अतः वह नरकों में तो जा सकता नहीं और स्वर्ग की कामना न होने से स्वर्ग में भी जा सकता नहीं तथा श्रद्धापूर्वक साधन में लगा हुआ होने से उसका पुनर्जन्म भी हो सकता नहीं परन्तु अन्त समय में परमात्मा की स्मृति न रहने से , दूसरा चिन्तन होने से उसको परमात्मा की प्राप्ति भी नहीं हुई तो फिर उसकी क्या गति होगी ? वह कहाँ जायेगा ?कृष्ण सम्बोधन देने का तात्पर्य है कि आप सम्पूर्ण प्राणियों को खींचने वाले हैं और उन प्राणियों की गति-आगति को जानने वाले हैं तथा इन गतियों के विधायक हैं। अतः मैं आपसे पूछता हूँ कि योग से विचलित हुए साधक को आप किधर खींचेंगे ? उसको आप कौन सी गति देंगे ? स्वामी रामसुखदास जी )

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