मोक्षसंन्यासयोग- अठारहवाँ अध्याय
तीनों गुणों के अनुसार ज्ञान , कर्म , कर्ता , बुद्धि ,धृति और सुख के पृथक-पृथक भेद
यया तु धर्मकामार्थान् धृत्या धारयतेऽर्जुन।
प्रसङ्गेन फलाकाङ्क्षी धृतिः सा पार्थ राजसी।।18.34।।
यया – जिसके द्वारा; तु – लेकिन; धर्मकामार्थान् ( धर्म – काम – अर्थान्) – कर्त्तव्य, सुख और धन; धृत्या – दृढ़ इच्छा द्वारा; धारयते – धारण करता है; अर्जुन – अर्जुनः प्रसङ्गेन – आसक्ति के कारण; फलाकाङ्क्षी ( फल-आकाङ्क्षी ) – फल की इच्छा; धृतिः – दृढ़ संकल्प; सा – वह; पार्थ – पृथापुत्र, अर्जुन; राजसी – रजोगुण।
हे पार्थ ! वह धृति जिसके द्वारा कोई मनुष्य आसक्ति और कर्म फल की इच्छा से कर्तव्य पालन करता है, सुख और धन प्राप्ति में लिप्त रहता है, वह राजसी धृति कहलाती है अर्थात कर्मफल का इच्छुक पुरुष अति आसक्ति से जिस धृति के द्वारा धर्म, अर्थ और काम (इन तीन पुरुषार्थों) को धारण करता है, वह धृति राजसी है।।18.34।।
यया तु धर्मकामार्थान्धृत्या ৷৷. सा पार्थ राजसी – राजसी धारणशक्ति से मनुष्य अपनी कामनापूर्ति के लिये धर्म का अनुष्ठान करता है , काम अर्थात् भोगपदार्थों को भोगता है और अर्थ अर्थात् धन का संग्रह करता है। अमावस्या , पूर्णिमा , व्यतिपात आदि अवसरों पर दान करना , तीर्थों में अन्नदान करना , पर्वों पर उत्सव मनाना , तीर्थयात्रा करना , धार्मिक संस्थाओं में चन्दा-चिट्ठा के रूप में कुछ चढ़ा देना , कभी कथाकीर्तन , भगवतसप्ताह आदि करवा लेना – यह सब केवल कामनापूर्ति के लिये करना ही धर्म को धारण करना है (टिप्पणी प0 916)। सांसारिक भोगपदार्थ तो प्राप्त होने ही चाहिये क्योंकि भोगपदार्थों से ही सुख मिलता है , संसार में कोई भी प्राणी ऐसा नहीं है जो भोगपदार्थों की कामना न करता हो । यदि मनुष्य भोगों की कामना न करे तो उसका जीवन ही व्यर्थ है – ऐसी धारण के साथ भोगपदार्थों की कामनापूर्ति में ही लगे रहना काम को धारण करना है। धन के बिना दुनिया में किसी का भी काम नहीं चलता , धन से ही धर्म होता है । यदि पास में धन न हो तो आदमी धर्म कर ही नहीं सकता । जितने आयोजन किये जाते हैं वे सब धन से ही तो होते हैं। आज जितने आदमी बड़े कहलाते हैं वे सब धन के कारण ही तो बड़े बने हैं । धन होने से ही लोग आदर-सम्मान करते हैं । जिसके पास धन नहीं होता उसको संसार में कोई पूछता ही नहीं । अतः धन का खूब संग्रह करना चाहिये – इस प्रकार धन में ही रचे-पचे रहना अर्थ को धारण करना है। संसार में अत्यन्त राग (आसक्ति) होने के कारण राजस पुरुष शास्त्र की मर्यादा के अनुसार जो कुछ भी शुभ काम करता है उसमें उसकी यही कामना रहती है कि इस कर्म का मुझे इस लोक में सुख , आराम , मान , सत्कार आदि मिले और परलोक में सुखभोग मिले। ऐसे फल की कामना वाले तथा संसार में अत्यन्त आसक्त मनुष्य की धारणशक्ति राजसी होती है। अब तामसी धृति के लक्षण बताते हैं।