मोक्षसंन्यासयोग- अठारहवाँ अध्याय
त्याग का विषय
अर्जुन उवाच
संन्यासस्य महाबाहो तत्त्वमिच्छामि वेदितुम्।
त्यागस्य च हृषीकेश पृथक्केशिनिषूदन।।18.1।।
अर्जुनः उवाच-अर्जुन ने कहा; संन्यासस्य-कर्मों का त्याग; महाबाहो-बलिष्ट भुजाओं वाला; तत्त्वम्-सत्य को; इच्छामि – चाहता हूँ; वेदितुम-जानना; त्यागस्य-कर्मफल के भोग की इच्छा का त्याग; च-भी; हृषीकेश-इन्द्रियों के स्वामी, श्रीकृष्ण; पृथक्-भिन्न रूप से; केशिनिषूदन-केशी असुर के संहार करने वाले, श्रीकृष्ण।
अर्जुन ने कहा- हे महाबाहु! मैं संन्यास और त्याग की प्रकृति अथवा उसके तत्व के संबंध में जानना चाहता हूँ। हे केशिनिषूदन! हे हृषिकेश! मैं दोनों के बीच का भेद जानने का भी इच्छुक हूँ अर्थात मैं संन्यास और त्याग का तत्त्व अलग-अलग जानना चाहता हूँ ।।18.1।।
(टिप्पणी प0 868) अर्जुन बोले — हे महाबाहो! हे हृषीकेश! हे केशिनिषूदन! मैं संन्यास और त्याग का तत्त्व अलग-अलग जानना चाहता हूँ।