The Bhagavad Gita Chapter 18

 

 

Previous          Menu          Next

 

मोक्षसंन्यासयोग-  अठारहवाँ अध्याय

त्याग का विषय

 

The Bhagavad Gita Chapter 18निश्चयं शृणु मे तत्र त्यागे भरतसत्तम।

त्यागो हि पुरुषव्याघ्र त्रिविधः संप्रकीर्तितः।।18.4।।

 

निश्चयम् – निष्कर्ष; शृणु-सुनो; मे – मेरे; तत्र-वहाँ; त्यागे-कर्मफलों के भोग की इच्छा का त्याग; भरतसत्तम ( भरत-सत्-तम ) -भरतश्रेष्ठ; त्यागः – कर्मफलों के भोग की इच्छा का त्याग; हि-वास्तव में; पुरुषव्याघ्र-मनुष्यों में बाघ; त्रिविधा:-तीन प्रकार का; सम्प्रकीर्तितः-घोषित किया जाता है।

 

हे भरतश्रेष्ठ! अब त्याग के विषय में मेरा अंतिम निर्णय सुनो। हे मनुष्यों में सिंह! वह त्याग तीन प्रकार का कहा गया है।।18.4।।

 

निश्चयं श्रृणु मे तत्र त्यागे भरतसत्तम – हे भरतवंशियों में श्रेष्ठ अर्जुन ! अब मैं संन्यास और त्याग – दोनों में से पहले त्याग के विषय में अपना मत कहता हूँ उसको तुम सुनो। त्यागो हि पुरुषव्याघ्र त्रिविधः संप्रकीर्तितः – हे पुरुषव्याघ्र ! त्याग तीन तरह का कहा गया है – सात्त्विक , राजस और तामस। वास्तव में भगवान के मत में सात्त्विक त्याग ही त्याग है परन्तु उसके साथ राजस और तामस त्याग का भी वर्णन करने का तात्पर्य यह है कि उसके बिना भगवान के अभीष्ट सात्त्विक त्याग की श्रेष्ठता स्पष्ट नहीं होती क्योंकि परीक्षा या तुलना करके किसी भी वस्तु की श्रेष्ठता सिद्ध करने के लिये दूसरी वस्तुएँ सामने रखनी ही पड़ती हैं। तीन प्रकार का त्याग बताने का तात्पर्य यह भी है कि साधक सात्त्विक त्याग को ग्रहण करे और राजस तथा तामस त्याग का त्याग करे।

 

       Next

 

 

By spiritual talks

Welcome to the spiritual platform to find your true self, to recognize your soul purpose, to discover your life path, to acquire your inner wisdom, to obtain your mental tranquility.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: Content is protected !!