The Bhagavad Gita Chapter 18

 

 

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मोक्षसंन्यासयोग-  अठारहवाँ अध्याय

तीनों गुणों के अनुसार ज्ञान , कर्म , कर्ता , बुद्धि ,धृति और सुख के पृथक-पृथक भेद

 

 

Bhagavat Gita chapter 18- Moksha Sanyas Yogaपृथक्त्वेन तु यज्ज्ञानं नानाभावान्पृथग्विधान्।

वेत्ति सर्वेषु भूतेषु तज्ज्ञानं विद्धि राजसम्।।18.21।।

 

पृथक्त्वेन-असंबद्ध; तु-लेकिन; यत्-जो; ज्ञानम्-ज्ञान; नानाभावान् – अनेक प्रकार के अस्तित्त्वों को; पृथग्विधान ( पृथक्-विधान ) -विभिन्न; वेत्ति-जानता है; सर्वेषु – समस्त; भूतेषु-जीवों में; तत्-उस; ज्ञानम्-ज्ञान को; विद्धि-जानो; राजसम्-राजसी।

 

परन्तु जिस ज्ञान के द्वारा कोई मनुष्य भिन्न-भिन्न शरीरों में अनेक जीवित प्राणियों को पृथक-पृथक और असंबद्ध रूप में देखता है उसे राजसी माना जाता है अर्थात् जिस ज्ञान के द्वारा मनुष्य सम्पूर्ण प्राणियों में नाना भावों या अनेक भावों को पृथक्-पृथक् या अलग-अलग रूप से जानता है, उस ज्ञानको तुम राजस समझो।।18.21।।

( राजस ज्ञान में राग की मुख्यता होती है । राग का यह नियम है कि वह जिसमें आ जाता है उसमें किसी के प्रति आसक्ति , मोह अथवा प्रेम उत्पन्न करा देता है और किसी के प्रति द्वेष या घृणा उत्पन्न करा देता है। इस राग के कारण ही मनुष्य, देवता, यक्ष , राक्षस, पशु ,पक्षी, कीट ,पतङ्ग,  वृक्ष , लता आदि जितने भी चर – अचर प्राणी हैं उन प्राणियों की विभिन्न आकृति, स्वभाव, नाम, रूप, गुण आदि को लेकर राजस ज्ञान वाला मनुष्य उनमें रहने वाली एक ही अविनाशी आत्मा या अविनाशी सत्ता को तत्त्व से अलग-अलग मानता है। )

 

पृथक्त्वेन तु (टिप्पणी प0 904.1) यज्ज्ञानं नानाभावान् पृथग्विधान् – राजस ज्ञान में राग की मुख्यता होती है – रजो रागात्मकं विद्धि (गीता 14। 7)। राग का यह नियम है कि वह जिसमें आ जाता है उसमें किसी के प्रति आसक्ति , प्रियता पैदा करा देता है और किसी के प्रति द्वेष पैदा करा देता है। इस राग के कारण ही मनुष्य , देवता , यक्ष-राक्षस , पशु-पक्षी , कीट-पतङ्ग , वृक्ष-लता आदि जितने भी चर-अचर प्राणी हैं उन प्राणियों की विभिन्न आकृति , स्वभाव , नाम , रूप , गुण आदि को लेकर राजस ज्ञान वाला मनुष्य उनमें रहने वाली एक ही अविनाशी आत्मा को तत्त्व से अलग-अलग समझता है। वेत्ति सर्वेषु भूतेषु तज्ज्ञानं विद्धि राजसम् – इसी तरह जिस ज्ञान से मनुष्य अलग-अलग शरीरों में अन्तःकरण , स्वभाव , इन्द्रियाँ , प्राण आदि के सम्बन्ध से प्राणियों को भी अलग-अलग मानता है वह ज्ञान राजस कहलाता है। राजस ज्ञान में जड-चेतन का विवेक नहीं होता।  अब तामस ज्ञान का वर्णन करते हैं।

 

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