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ज्ञानकर्मसंन्यासयोग ~ अध्याय चार
01-15 योग परंपरा, भगवान के जन्म कर्म की दिव्यता, भक्त लक्षणभगवत्स्वरूप
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16-18 कर्म-विकर्म एवं अकर्म की व्याख्या
19-23 कर्म में अकर्मता-भाव, नैराश्य-सुख, यज्ञ की व्याख्या
24-33 फलसहित विभिन्न यज्ञों का वर्णन
34-42 ज्ञान की महिमा तथा अर्जुन को कर्म करने की प्रेरणा
श्लोक 1 श्लोक 2 श्लोक 3 श्लोक4 श्लोक 5 श्लोक 6 श्लोक 7 श्लोक 8
श्लोक 9 श्लोक 10 श्लोक 11 श्लोक 12 श्लोक 13 श्लोक 14 श्लोक 15 श्लोक 16
श्लोक 17 श्लोक 18 श्लोक 19 श्लोक 20 श्लोक 21 श्लोक 22 श्लोक 23 श्लोक 24
श्लोक 25 श्लोक 26 श्लोक 27 श्लोक 28 श्लोक 29 श्लोक 30 श्लोक 31 श्लोक 32
श्लोक 33 श्लोक 34 श्लोक 35 श्लोक 36 श्लोक 37 श्लोक 38 श्लोक 39 श्लोक 40
अध्याय चार : ज्ञानकर्मसंन्यासयोग