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विभूतियोग- दसवाँ अध्याय
19-42 भगवान द्वारा अपनी विभूतियों और योगशक्ति का वर्णन
आदित्यानामहं विष्णुर्ज्योतिषां रविरंशुमान् ।
मरीचिर्मरुतामस्मि नक्षत्राणामहं शशी ॥10.21॥
आदित्यानाम्–आदिति के बारह पुत्रों में; अहम्–मैं हूँ; विष्णु:-भगवान विष्णु; ज्योतिषाम् – समस्त प्रकाशित होने वाले पदार्थों में; रविः–सूर्य; अंशुमान्–किरणों वाला; मरीचिः–मरीचि, मरूताम्–मरूतों में; अस्मि–हूँ; नक्षत्राणाम्–तारों में; अहम्–मैं हूँ; शशि–चन्द्रमा।
मैं अदिति के बारह पुत्रों में विष्णु ( वामन ) और प्रकाशमान वस्तुओं या ज्योतियों में किरणों वाला सूर्य हूँ तथा मैं उनचास मरुतों (वायुदेवताओं) का तेज और नक्षत्रों का अधिपति चंद्रमा हूँ॥10.21॥
‘आदित्यानामहं विष्णुः’ – अदिति के धाता , मित्र आदि जितने पुत्र हैं उनमें विष्णु अर्थात् वामन मुख्य हैं। भगवान ने ही वामनरूप से अवतार लेकर दैत्यों की सम्पत्ति को दानरूप से लिया और उसे अदिति के पुत्रों ( देवताओं ) को दे दिया (टिप्पणी प0 556.2)। ‘ज्योतिषां रविरंशुमान्’ – चन्द्रमा, नक्षत्र , तारा , अग्नि आदि जितनी भी प्रकाशमान चीजें हैं उनमें किरणों वाला सूर्य मेरी विभूति है क्योंकि प्रकाश करने में सूर्य की मुख्यता है। सूर्य के प्रकाश से ही सभी प्रकाशमान होते हैं। ‘मरीचिर्मरुतामस्मि’ – सत्त्वज्योति , आदित्य , हरित आदि नामों वाले जो उनचास ( 49 ) मरुत हैं उनका मुख्य तेज मैं हूँ। उस तेज के प्रभाव से ही इन्द्र के द्वारा दिति के गर्भ के सात टुकड़े करने पर और उन सातों के फिर सात-सात टुकड़े करने पर भी वे मरे नहीं बल्कि एक से उनचास ( 49 ) हो गये। ‘नक्षत्राणामहं शशी ‘ – अश्विनी , भरणी , कृत्ति का आदि जो सत्ताईस ( 27 ) नक्षत्र हैं उन सबका अधिपति चन्द्रमा मैं हूँ। इन विभूतियों में जो विशेषता – महत्ता है वह वास्तव में भगवान की है। [इस प्रकरण में जिन विभूतियों का वर्णन आया है उनको भगवान ने विभूतिरूप से ही कहा है , अवताररूप से नहीं जैसे – अदिति के पुत्रों में वामन मैं हूँ (10। 21), शस्त्रधारियों में राम मैं हूँ (10। 31) , वृष्णिवंशियों में वासुदेव (कृष्ण) और पाण्डवों में धनञ्जय (अर्जुन) मैं हूँ (10। 37) इत्यादि। कारण कि यहाँ प्रसङ्ग विभूतियों का है – स्वामी रामसुखदास जी ]