Vibhooti Yog Bhagavad Gita chapter 10

Contents

Previous         Menu        Next 

विभूतियोग-  दसवाँ अध्याय

 

19-42 भगवान द्वारा अपनी विभूतियों और योगशक्ति का वर्णन

 

 

Vibhooti Yog Bhagavad Gita chapter 10उच्चैःश्रवसमश्वानां विद्धि माममृतोद्धवम्‌

एरावतं गजेन्द्राणां नराणां नराधिपम्‌ 10.27

 

 

उच्चैःश्रवसम्श्रवा नाम का अश्व ; अश्वानाम्अश्वों में; विद्धिजानो, समझो , मानो; माम्मुझे; अमृतउद्धवम्समुद्र मन्थन से उत्पन्न अमृत; ऐरावतम्ऐरावत; गज इन्द्राणाम्गर्वित हाथियों में; नराणाम्मनुष्यों में; तथा; नर अधिपम्राजा।।

 

 

अश्वों में मुझे समुद्र मंथन के समय अमृत के साथ उत्पन्न होने वाला उच्चैःश्रवा नामक अश्व जानो , श्रेष्ठ हाथियों में मुझे गर्वित ऐरावत नामक हाथी समझो और मनुष्यों में राजा मुझे ही जानो अर्थात मेरी ही विभूति समझो 10.27

 

 

( ‘उच्चैःश्रवसमश्वानां विद्धि माममृतोद्भवम्’ – समुद्रमन्थन के समय प्रकट होने वाले चौदह रत्नों में उच्चैःश्रवा घोड़ा भी एक रत्न है। यह इन्द्र का वाहन और सम्पूर्ण घोड़ों का राजा है। इसलिये भगवान ने इसको अपनी विभूति बताया है। ‘ऐरावतं गजेन्द्राणाम्’ – हाथियों के समुदाय में जो श्रेष्ठ होता है उसको गजेन्द्र कहते हैं। ऐसे गजेन्द्रों में भी ऐरावत हाथी श्रेष्ठ है। उच्चैःश्रवा घोड़े की तरह ऐरावत हाथी की उत्पत्ति भी समुद्र से हुई है और यह भी इन्द्र का वाहन है। इसलिये भगवान ने इसको अपनी विभूति बताया है। ‘नराणां च नराधिपम् ‘ – सम्पूर्ण प्रजा का पालन , संरक्षण , शासन करने वाला होनेसे राजा सम्पूर्ण मनुष्यों में श्रेष्ठ है। साधारण मनुष्यों की अपेक्षा राजा में भगवान की ज्यादा शक्ति होती है। इसलिये भगवान ने राजा को अपनी विभूति बताया है (टिप्पणी प0 559)। इन विभूतियों में जो बलवत्ता सामर्थ्य है वह भगवान से ही आयी है अतः उसको भगवान की ही मानकर भगवान का चिन्तन करना चाहिये – स्वामी रामसुखदास जी )

 

        Next 

 

 

By spiritual talks

Welcome to the spiritual platform to find your true self, to recognize your soul purpose, to discover your life path, to acquire your inner wisdom, to obtain your mental tranquility.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: Content is protected !!