Vibhooti Yog Bhagavad Gita chapter 10

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विभूतियोग-  दसवाँ अध्याय

 

12-18 अर्जुन द्वारा भगवान की स्तुति तथा विभूति और योगशक्ति को कहनेके लिए प्रार्थना

 

 

Shrimad Bhagavad Gita chapter 10अर्जुन उवाच

परं ब्रह्म परं धाम पवित्रं परमं भवान्‌

पुरुषं शाश्वतं दिव्यमादिदेवमजं विभुम्‌ 10.12

आहुस्त्वामृषयः सर्वे देवर्षिर्नारदस्तथा

असितो देवलो व्यासः स्वयं चैव ब्रवीषि मे 10.13

 

 

अर्जुनःउवाचअर्जुन ने कहा; परम्परम; ब्रह्मसत्य; परम्परम; धामलोक; पवित्रम्शुद्ध; परमम्सर्वोच्च; भवान्आप; पुरुषम्पुरुष; शाश्वतम्सनातन; दिव्यम्दिव्य; आदि देवम्आदि स्वामी; अजम्अजन्मा; विभुम्सर्वोच्च; आहुःकहते हैं; त्वाम्आपको; ऋषयःऋषिगण; सर्वेसभी; देवऋषिःदेवताओं के ऋषि; नारदःनारद; तथाऔर; असितःअसित; देवलःदेवल; व्यासःव्यास; स्वयम्स्वयं; और; एवनिश्चय ही; ब्रवीषिआप बता रहे हैं; मेमुझको।

 

 

अर्जुन बोलेआप परम ब्रह्म, परम धाम और परम पवित्र हैं। आप शाश्वत, दिव्य पुरुष, देवों के भी आदिदेव, अजन्मा , अविनाशी भगवान्  विभु ( सर्वव्यापी ) और महानतम हैं ऐसा आपको समस्त ऋषिगणदेवर्षि नारद, असित , देवल ऋषि तथा महर्षि व्यास भी कहते हैं और आप भी मेरे प्रति कहते हैं अर्थात अब आप स्वयं भी मुझे यही सब बता रहे हैं 10.12-10.13

 

परं ब्रह्म परं धाम पवित्रं परमं भवान्’ – अपने सामने बैठे हुए भगवान की स्तुति करते हुए अर्जुन कहते हैं कि मेरे पूछने पर जिसको आपने परम ब्रह्म (गीता 8। 3) कहा है वह परम ब्रह्म आप ही हैं। जिसमें सब संसार स्थित रहता है वह परम धाम अर्थात् परम स्थान आप ही हैं (गीता 9। 18)। जिसको पवित्रों में भी पवित्र कहते हैं – ‘पवित्राणां पवित्रं यः’ वह महान् पवित्र भी आप ही हैं। ‘पुरुषं शाश्वतं दिव्यमादिदेवमजं ৷৷. स्वयं चैव ब्रवीषि मे’ – ग्रन्थों में ऋषियों ने (टिप्पणी प0 549.1) , देवर्षि नारद ने (टिप्पणी प0 549.2) , असित और उनके पुत्र देवल ऋषि ने (टिप्पणी प0 549.3) तथा महर्षि व्यासजी ने (टिप्पणी प0 549.4) आपको शाश्वत , दिव्य पुरुष , आदिदेव , अजन्मा और विभु कहा है। आत्मा के रूप में शाश्वत (गीता 2। 20) , सगुण-निराकार के रूप में दिव्य पुरुष (गीता 8। 10) , देवताओं और महर्षियों आदि के रूप में आदिदेव (गीता 10। 2) मूढ़लोग मेरे को अज नहीं जानते (गीता 7। 25) तथा असम्मूढ़ लोग मेरे को अज जानते हैं (गीता 10। 3 ) – इस रूप में अज और मैं अव्यक्तरूप से सारे संसार में व्यापक हूँ (गीता 9। 4) – इस रूप में विभु स्वयं आपने मेरे प्रति कहा है।

 

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