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विभूतियोग- दसवाँ अध्याय
19-42 भगवान द्वारा अपनी विभूतियों और योगशक्ति का वर्णन
अनन्तश्चास्मि नागानां वरुणो यादसामहम् ।
पितॄणामर्यमा चास्मि यमः संयमतामहम् ॥10.29॥
अनन्तः–अनन्त; च–भी; अस्मि–हूँ; नागानाम्–फणों वाले सर्पो में; वरुण:-जलचरों के देवता; यादसाम्–समस्त जलचरों में; अहम्–मैं हूँ; पितृणाम् – पितरों में; अर्यमा–अर्यमा; च–भी; अस्मि–हूँ; यमः–मृत्यु का देवता; संयमताम्–समस्त नियमों के नियंताओं में और; अहम्–मैं हूँ।
मैं नागों में अनंत ( शेषनाग ) और जलचरों का अधिपति वरुण देव हूँ और पितरों में अर्यमा नामक पितर तथा समस्त नियमों के नियंताओं में अर्थात शासन करने वालों में यमराज मैं हूँ॥10.29॥
‘अनन्तश्चास्मि नागानाम् ‘ – शेषनाग सम्पूर्ण नागों के राजा हैं (टिप्पणी प0 560)। इनके एक हजार फण हैं। ये क्षीरसागर में सदा भगवान की शय्या बनकर भगवान को सुख पहुँचाते रहते हैं। ये अनेक बार भगवान के साथ अवतार लेकर उनकी लीला में शामिल हुए हैं। इसलिये भगवान ने इनको अपनी विभूति बताया है। ‘वरुणो यादसामहम्’ – वरुण सम्पूर्ण जल-जन्तुओं के तथा जल-देवताओं के अधिपति हैं और भगवान के भक्त हैं। इसलिये भगवान ने इनको अपनी विभूति बताया है। ‘पितृ़णामर्यमा चास्मि ‘ – कव्यवाह , अनल , सोम आदि सात पितृगण हैं। इन सबमें अर्यमा नाम वाले पितर मुख्य हैं। इसलिये भगवान ने इनको अपनी विभूति बताया है। ‘यमः संयमतामहम्’ – प्राणियों पर शासन करने वाले राजा आदि जितने भी अधिकारी हैं उनमें यमराज मुख्य हैं। ये प्राणियों को उनके पाप-पुण्यों का फल भुगता कर शुद्ध करते हैं। इनका शासन न्याय और धर्मपूर्वक होता है। ये भगवान के भक्त और लोकपाल भी हैं। इसलिये भगवान ने इनको अपनी विभूति बताया है। इन विभूतियों में जो विलक्षणता दिखती है वह इनकी व्यक्तिगत नहीं है। वह तो भगवान से ही आयी है और भगवान की ही है। अतः इनमें भगवान का ही चिन्तन होना चाहिये।