Vibhooti Yog Bhagavad Gita chapter 10

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विभूतियोग-  दसवाँ अध्याय

 

19-42 भगवान द्वारा अपनी विभूतियों और योगशक्ति का वर्णन

 

 

Vibhooti Yog Bhagavad Gita chapter 10रुद्राणां शङ्‍करश्चास्मि वित्तेशो यक्षरक्षसाम्‌

वसूनां पावकश्चास्मि मेरुः शिखरिणामहम्‌ 10.23

 

 

रुद्राणाम्समस्त रुद्रों में; शङ्करःशिव भगवान; और; अस्मिहूँ; वित्त ईश:-देवताओं की धन संपदा का कोषाध्यक्ष; यक्षरक्षसाम्यक्षों तथा राक्षसों में; वसूनाम्वसुओं में; पावकःअग्नि; भी; अस्मिहूँ; मेरू:-मेरू पर्वत; शिखरिणाम्पर्वतों में; अहम्मैं हूँ।

 

 

मैं ग्यारह रुद्रों में शंकर हूँ और यक्ष तथा राक्षसों में धन का स्वामी कुबेर हूँ। मैं आठ वसुओं में अग्नि हूँ और शिखरवाले पर्वतों में सुमेरु पर्वत हूँ॥10.23

 

 

(‘रुद्राणां शंकरश्चास्मि ‘ – हर , बहुरूप , त्र्यम्बक आदि ग्यारह रुद्रों में शम्भु अर्थात् शंकर सबके अधिपति हैं। ये कल्याण प्रदान करने वाले और कल्याणस्वरूप हैं। इसलिये भगवान ने इनको अपनी विभूति बताया है। ‘वित्तेशो यक्षरक्षसाम् ‘ ~ ‘कुबेर’ यक्ष तथा राक्षसों के अधिपति हैं और इनको धनाध्यक्ष के पद पर नियुक्त किया गया है। सब यक्ष-राक्षसों में मुख्य होने से ये भगवान की विभूति हैं। ‘वसूनां पावकश्चास्मि ‘ – धर , ध्रुव , सोम आदि आठ वसुओं में अनल अर्थात् पावक (अग्नि ) सबके अधिपति हैं। ये सब देवताओं को यज्ञ की हवि पहुँचाने वाले तथा भगवान के मुख हैं। इसलिये इनको भगवान ने अपनी विभूति बताया है। ‘मेरुः शिखरिणामहम्’ – सोने , चाँदी , ताँबे आदि के शिखरों वाले जितने पर्वत हैं उनमें सुमेरु पर्वत मुख्य है। यह सोने तथा रत्नों का भण्डार है। इसलिये भगवान ने इसको अपनी विभूति बताया है। इस श्लोक में जो चार विभूतियाँ कही हैं उनमें जो कुछ विशेषता – महत्ता दिखती है वह विभूतियों के मूलरूप परमात्मा से ही आयी है। अतः इन विभूतियों में परमात्मा का ही चिन्तन होना चाहिये – स्वामी रामसुखदास जी )

 

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