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विभूतियोग- दसवाँ अध्याय
19-42 भगवान द्वारा अपनी विभूतियों और योगशक्ति का वर्णन
अश्वत्थः सर्ववृक्षाणां देवर्षीणां च नारदः ।
गन्धर्वाणां चित्ररथः सिद्धानां कपिलो मुनिः ॥10.26॥
अश्वत्थः–बरगद का वृक्ष; सर्ववृक्षाणाम् – सारे वृक्षों में; देवऋषीणाम् – समस्त स्वर्ग के देवर्षियों में; च–तथा; नारदः–नारद; गन्धर्वाणाम्–गन्धर्वलोक के वासियों में; चित्ररथ:-चित्ररथ; सिद्धानाम्–सिद्धि प्राप्त संतों में; कपिल:मुनि:-कपिल मुनि।
समस्त वृक्षों में मैं ( अश्वत्थ ) पीपल का वृक्ष हूँ और देव ऋषियों में मैं नारद हूँ, गंधर्वों में मैं चित्ररथ और सिद्ध पुरुषों में मैं कपिल मुनि हूँ।
॥10.26॥
‘अश्वत्थः सर्ववृक्षाणाम्’ – पीपल एक सौम्य वृक्ष है। इसके नीचे हरेक पेड़ लग जाता है और यह पहाड़ , मकान की दीवार , छत आदि कठोर जगह पर भी पैदा हो जाता है। पीपल वृक्ष के पूजन की बड़ी महिमा है। आयुर्वेद में बहुत से रोगों का नाश करने की शक्ति पीपल वृक्ष में बतायी गयी है। इन सब दृष्टियों से भगवान ने पीपल को अपनी विभूति बताया है। ‘देवर्षीणां च नारदः’ – देवर्षि भी कई हैं और नारद भी कई हैं पर देवर्षि नारद एक ही हैं। ये भगवान के मन के अनुसार चलते हैं और भगवान को जैसी लीला करनी होती है ये पहले से ही वैसी भूमिका तैयार कर देते हैं। इसलिये नारदजी को भगवान का मन कहा गया है। ये सदा वीणा लेकर भगवान के गुण गाते हुए घूमते रहते हैं। वाल्मीकि और व्यासजी को उपदेश देकर उनको रामायण और भागवत जैसे ग्रन्थों के लेखन कार्य में प्रवृत्त कराने वाले भी नारदजी ही हैं। नारदजी की बात पर मनुष्य , देवता , असुर , नाग आदि सभी विश्वास करते हैं। सभी इनकी बात मानते हैं और इनसे सलाह लेते हैं। महाभारत आदि ग्रन्थों में इनके अनेक गुणों का वर्णन किया गया है। यहाँ भगवान ने इनको अपनी विभूति बताया है। ‘गन्धर्वाणां चित्ररथः’ – स्वर्ग के गायकों को गन्धर्व कहते हैं और उन सभी गन्धर्वों में चित्ररथ मुख्य हैं। अर्जुन के साथ इनकी मित्रता रही और इनसे ही अर्जुन ने गानविद्या सीखी थी। गानविद्या में अत्यन्त निपुण और गन्धर्वों में मुख्य होने से भगवान ने इनको अपनी विभूति बताया है। ‘सिद्धानां कपिलो मुनिः’ – सिद्ध दो तरह के होते हैं – एक तो साधन करके सिद्ध बनते हैं और दूसरे जन्मजात सिद्ध होते हैं। कपिलजी जन्मजात सिद्ध हैं और इनको आदिसिद्ध कहा जाता है। ये कर्दमजी के यहाँ देवहूति के गर्भ से प्रकट हुए थे। ये सांख्य के आचार्य और सम्पूर्ण सिद्धों के गणाधीश हैं। इसलिये भगवान ने इनको अपनी विभूति बताया है। इन सब विभूतियों में जो विलक्षणता प्रतीत होती है वह मूलतः तत्त्वतः भगवान की ही है। अतः साधक की दृष्टि भगवान में ही रहनी चाहिये।