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विभूतियोग- दसवाँ अध्याय
19-42 भगवान द्वारा अपनी विभूतियों और योगशक्ति का वर्णन
प्रह्लादश्चास्मि दैत्यानां कालः कलयतामहम् ।
मृगाणां च मृगेन्द्रोऽहं वैनतेयश्च पक्षिणाम् ॥10.30॥
प्रहलादः–प्रह्लाद; च–भी; अस्मि–हूँ; दैत्यानाम्–असुरों में; काल:-काल; कलयताम्–दमनकर्ताओं में काल; अहम्–मैं हूँ; मृगाणाम्–पशुओं में; च–तथा; मृग इन्द्रः–सिंह; अहम्–मैं हूँ; वैनतेयः–गरुड़; च–भी; पक्षिणाम्–पक्षियों में।
मैं दैत्यों में प्रह्लाद और गणना करने वालों का काल अर्थात समय (क्षण, घड़ी, दिन, पक्ष, मास आदि में जो समय है वह मैं हूँ) हूँ तथा पशुओं में मृगराज सिंह और पक्षियों में गरुड़ हूँ॥10.30॥
‘प्रह्लादश्चास्मि दैत्यानाम् ‘ – जो दिति से उत्पन्न हुए हैं उनको दैत्य कहते हैं। उन दैत्यों में प्रह्लादजी मुख्य हैं और श्रेष्ठ हैं। ये भगवान के परम विश्वासी और निष्काम प्रेमी भक्त हैं। इसलिये भगवान ने इनको अपनी विभूति बताया है। प्रह्लादजी तो बहुत पहले हो चुके थे पर भगवान ने दैत्यों में प्रह्लाद मैं हूँ – ऐसा वर्तमान का प्रयोग किया है। इससे यह सिद्ध होता है कि भगवान के भक्त नित्य रहते हैं और श्रद्धा- भक्ति के अनुसार दर्शन भी दे सकते हैं। उनके भगवान में लीन हो जाने के बाद अगर कोई उनको याद करता है और उनके दर्शन चाहता है तो उनका रूप धारण करके भगवान दर्शन देते हैं। ‘कालः कलयतामहम् ‘ – ज्योतिषशास्त्र में काल (समय ) से ही आयु की गणना होती है। इसलिये क्षण , घड़ी , दिन , पक्ष , मास , वर्ष आदि गणना करने से साधनों में काल भगवान की विभूति है। ‘मृगाणां च मृगेन्द्रोऽहम्’ – बाघ , हाथी , चीता , रीछ आदि जितने भी पशु हैं उन सब में सिंह बलवान , तेजस्वी , प्रभावशाली , शूरवीर और साहसी है। यह सब पशुओं का राजा है। इसलिये भगवान ने इसको अपनी विभूति बताया है। ‘वैनतेयश्च पक्षिणाम्’ – विनता के पुत्र गरुड़जी सम्पूर्ण पक्षियों के राजा हैं और भगवान के भक्त हैं। ये भगवान विष्णु के वाहन हैं और जब ये उड़ते हैं तब इनके पंखों से स्वतः सामवेद की ऋचाएँ ध्वनित होती हैं। इसलिये भगवान ने इनको अपनी विभूति बताया है। इन सब विभूतियों में अलग-अलग रूप से जो मुख्यता बतायी गयी है वह तत्त्वतः भगवान की ही है। इसलिये इनकी ओर दृष्टि जाते ही स्वतः भगवान का चिन्तन होना चाहिये।