Vibhooti Yog Bhagavad Gita chapter 10

Contents

Previous         Menu        Next 

विभूतियोग-  दसवाँ अध्याय

 

19-42 भगवान द्वारा अपनी विभूतियों और योगशक्ति का वर्णन

 

 

Vibhooti Yog Bhagavad Gita chapter 10सर्गाणामादिरन्तश्च मध्यं चैवाहमर्जुन

अध्यात्मविद्या विद्यानां वादः प्रवदतामहम्‌ 10.32

 

 

सर्गाणाम्सम्पूर्ण सृष्टियों का; आदिःप्रारम्भ; अन्तःअन्त; तथा; मध्यम्मध्य; भी; एवनिसंदेह; अहम्मैं हूँ; अर्जुनअर्जुन; अध्यात्मविद्याआध्यात्मज्ञान; विद्यानाम्विद्याओं में; वादःतार्किक, निष्कर्ष; प्रवदताम्तर्को में; अहम्मैं हूँ।

 

 

हे अर्जुन! मुझे समस्त सृष्टियों का आदि, मध्य और अंत जानो। सभी विद्याओं में मैं आध्यात्म विद्या हूँ और सभी तर्कों का मैं तार्किक निष्कर्ष हूँ अर्थात परस्पर शास्त्रार्थ करने वालों का वाद (तत्त्वनिर्णय के लिये किया जाने वाला वाद ) हूँ 10.32

 

 

(‘सर्गाणामादिरन्तश्च मध्यं चैवाहम् ‘ – जितने सर्ग और महासर्ग होते हैं अर्थात् जितने प्राणियों की उत्पत्ति होती है उनके आदि में भी मैं रहता हूँ , उनके मध्य में भी मैं रहता हूँ और उनके अन्त में (उनके लीन होने पर) भी मैं रहता हूँ। तात्पर्य है कि सब कुछ वासुदेव ही है। अतः मात्र संसार को , प्राणियों को देखते ही भगवान की याद आनी चाहिये। ‘अध्यात्मविद्या विद्यानाम्’ – जिस विद्या से मनुष्य का कल्याण हो जाता है वह अध्यात्मविद्या कहलाती है (टिप्पणी प0 562)। दूसरी सांसारिक कितनी ही विद्याएँ पढ़ लेने पर भी पढ़ना बाकी ही रहता है परन्तु इस अध्यात्मविद्या के प्राप्त होने पर पढ़ना अर्थात् जानना बाकी नहीं रहता। इसलिये भगवान ने इसको अपनी विभूति बताया है। ‘वादः प्रवदतामहम् ‘ – आपस में जो शास्त्रार्थ किया जाता है वह तीन प्रकार का होता है  (1) जल्प ~ युक्ति-प्रयुक्ति से अपने पक्ष का मण्डन और दूसरे पक्ष का खण्डन करके अपने पक्ष की जीत और दूसरे पक्ष की हार करने की भावना से जो शास्त्रार्थ किया जाता है उसको जल्प कहते हैं। (2) वितण्डा – अपना कोई भी पक्ष न रखकर केवल दूसरे पक्ष का खण्डन ही खण्डन करने के लिये जो शास्त्रार्थ किया जाता है उसको वितण्डा कहते हैं। (3) वाद – बिना किसी पक्षपात के केवल तत्त्व-निर्णय के लिये आपस में जो शास्त्रार्थ (विचार-विनिमय) किया जाता है उसको वाद कहते हैं। उपर्युक्त तीनों प्रकार के शास्त्रार्थों में वाद श्रेष्ठ है। इसी वाद को भगवान ने अपनी विभूति बताया है – स्वामी रामसुखदास जी )

 

    Next 

 

By spiritual talks

Welcome to the spiritual platform to find your true self, to recognize your soul purpose, to discover your life path, to acquire your inner wisdom, to obtain your mental tranquility.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: Content is protected !!